Monday, December 16, 2013

चाँद से बातें
चाँद से बातें की, बहुत सारी,
रात सारी.

पूछा उससे
कि, चाँद,
तू जो रहता था खिला खिला,
झिलमिल झिलमिल तारों के बीच,
धरा को कर दूधिया,
चाँदनी की चादर खींच,

माना के तू दूर था,
पर, चेहरे पे तेरे नूर था,
कवियों की कल्पना तू,
यौवन से भरपूर था.

पर आज ऐसा क्या हुआ,
जो तू इतना निस्तेज है,
क्या चाँदनी रूठी हुई,
या खुशियों से परहेज़ है.

भोर होने को थी,
रात भी खोने को थी,
चाँद मुस्कुराया,
थोड़ा अलसाया,
अँगड़ाई ली और बोला.

अरे पगले, तू याद कर,
परसों जब तू भूखा था,
आँतें खुश्क और पेट सूखा था,
तब मुझमें तुझे रोटी नज़र आती थी,
कभी चिकन बिरियानी में,
कभी मुझमें दाल - बाटी थी.

और कल ही की तो बात है,
जब प्रेम पाश के बंधन में
मन तेरा प्रेम से ओत प्रोत,
तब पानी तू था चन्दन मैं.

अब मेरी बात गौर कर,
ना रोटी था ना चन्दन मैं.

ना तेज़ मेरा क्षीण है,
ना पिया मिलन की आस है,
मैं तो जैसा था वैसा हूँ,
पर तेरा मन कुछ उदास है.

--- निर्मल कुमार 

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